अब हौं कासों बैर करौं ? कहत पुकारत प्रभु निज मुखते । “घट घट हौं बिहरौं” ॥ध्रुव ॥ आपु समान सबै जग लेखौं । भक्तन अधिक डरौं ॥ श्रीहरिदास कृपाते हरिकी । नित निर्भय विचरौं ॥ १ ॥