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परिशिष्ट-३


ना मंदिरमें, ना मसजिदमें,
ना गिरजेके आसपासमें,
ना पर्वत पर, ना नदियोंमें,
ना घर बैठे, ना प्रवासमें,
ना कुंजोंमें, ना उपवनके
‘शांतिभवन’ या ‘सुखनिवास’ में,
ना गाने में, ना बानेमें,
ना आँसूमें, नहीं हासमें,
ना छन्दोंमें, ना प्रबन्धमें,
अलंकार या अनुप्रासमें,
खोज ले कोई, राम मिलेंगे,
दीनजनोंकी भूख प्यासमें ।

रामनरेश त्रिपाठी
 
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